चमार जाति एक ऐसा जाती है जिसका इतिहास अलग ही रहा है, चमार जाति के लोग अक्सर चमड़े का काम करते थे इसलिए उन्हें चमार का भी नाम दिया गया लेकिन चमार जाति के लोगों को और भी कई नाम जैसे कि जाटव, मोची, रामदासी, रविदास इत्यादि कई सारे नाम से से जाना जाता है
चमार जाति का काम
चमार जाति के लोग ज्यादातर चमड़े जूते चप्पल का काम करते हैं इसलिए इन्हें चमार जाति का भी नाम दिया गया लेकिन आज के समय में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान लागू होने के बाद चमार जाति के लोग अलग-अलग क्षेत्र में अपनी पहचान बना रहे हैं.
चमार जाति की उत्पत्ति का इतिहास
चमार जाति का इतिहास चमार वंश से जुड़ा हुआ है, अभी के समय में लोग चमार जाति को चमार शब्द से हैं संबोधित करते हैं, कुछ लोग चमार डाल साम्राज्य के राजा वीर मथरे राजा से भी जोड़ते हैं.
आज के दौर पर चमार जाति के इतिहास को बुलाकर लोग इन्हें छूत, हरिजन कहकर बुलाते हैं और लेकिन कानूनी तौर पर यह बुलाना एक दंडनीय अपराध है और इसके लिए कानून के तहत एससी एसटी धारा में कैसे भी दर्ज हो सकती है.
संत गुरु रविदास की जाती का इतिहास
चमार जाति में आने कोने जन्म लिया आज से कई वर्षों पूर्व संतगुरु रविदास चमार जाति में जन्म लेकर भक्तिधारा में इतने मग्न हो गए कीआज के समय में लोग संत गुरु रविदास को संतों का गुरु कहा जाता है और साथ ही संत गुरु रविदास से जुड़ी कई गाथा है, संत गुरु रविदास नेअपनी भक्ति से गंगा मां को भी प्रसन्न कर दिया था और उनका बहुत ही फेमस डायलॉग है, मन चंगा तो कठौती में गंगा
डॉ भीमराव अंबेडकर की जाति का इतिहास
डॉ भीमराव अंबेडकर जिन्होंने संविधान को लिखा था इसलिए उन्हें संविधान रचयिता भी कहा जाता है यह भी चमार जाति के ही थे भीमराव अंबेडकर के जन्म के समय चमार जाति को महार के नाम से भी जाना जाता था, डॉ भीमराव अंबेडकरका जन्म उसे परिवार से हुआ था जहां लोग अंबेडकर की जाति को अछूत मानते थे, उसे समय चमार जाति केबच्चों को स्कूल में नहीं बैठने दिया जाता था उसके बाद भी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने पढ़ाई की और दुनिया में अपनी पहचान बनाई थी
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