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चमार जाति का इतिहास (History of Chamar Caste)

By The Chamar

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चमार जाति भारत की एक प्रमुख अनुसूचित जाति है, जो परंपरागत रूप से चमड़े के काम, जूते बनाने और सफाई के काम से जुड़ी रही है। “चमार” शब्द संस्कृत के शब्द “चर्मकार” से लिया गया है, जिसका अर्थ है – “चमड़े का काम करने वाला”। इस जाति का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है, लेकिन सामाजिक रूप से इन्हें लंबे समय तक छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ा।

चमार जाति का इतिहास और सामाजिक स्थिति

प्राचीन काल: चमार जाति के लोग चमड़े के सामान बनाने, जानवरों की खाल से चीजें तैयार करने जैसे काम प्राचीन काल से करते आ रहे हैं। समाज में यह काम आवश्यक होने के बावजूद निम्न माना जाता था।

मध्यकाल: इस काल में जातिगत भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार और बढ़ गया। इन्हें गांवों के बाहर बसाया गया और मंदिरों में प्रवेश वर्जित कर दिया गया।

ब्रिटिश काल: ब्रिटिश शासन के दौरान कुछ चमार लोगों को सेना और प्रशासनिक सेवाओं में भी अवसर मिलने लगे। इस समय कुछ चमारों ने शिक्षा और सामाजिक सुधार की दिशा में काम करना शुरू कर दिया।

आधुनिक काल: डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में दलित आंदोलन ने चमार और अन्य दलित जातियों को शिक्षा, अधिकार और समानता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। आज चमार जाति के कई लोग राजनीतिक, शैक्षणिक और प्रशासनिक क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

चमार जाति मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और महाराष्ट्र में पाई जाती है।

चमार जाति में राव, जाटव, मोची आदि कई उपजातियाँ हैं।

स्वतंत्रता के बाद इन्हें भारत के संविधान में अनुसूचित जाति का दर्जा मिला, जिसके कारण इन्हें आरक्षण, शिक्षा और सरकारी नौकरियों में लाभ मिला।

भारत एक विविधतापूर्ण देश है जहाँ सदियों से जाति व्यवस्था सामाजिक संरचना का हिस्सा रही है। इस व्यवस्था में कुछ जातियों को सामाजिक रूप से उच्च माना जाता था, जबकि कुछ जातियों को निम्न और अछूत माना जाता था। चमार जाति उन जातियों में से एक है जिसे पारंपरिक रूप से निम्न माना जाता था, लेकिन आज यह जाति न केवल सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक है बल्कि संघर्ष और प्रगति का उदाहरण भी है। इस लेख में चमार जाति के ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आधुनिक विकास के बारे में व्यापक जानकारी दी जा रही है।

चमार जाति
चमार जाति
  1. चमार जाति की उत्पत्ति और व्युत्पत्ति:
    चमार” शब्द संस्कृत के “चर्मकार” से लिया गया है, जिसका अर्थ है – “चमड़े से काम करने वाला”। चमार जाति पारंपरिक रूप से चमड़े की सफाई, उसे रंगने, उससे चीजें बनाने जैसे कामों से जुड़ी रही है। मोची समाज की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला कार्य करता था, लेकिन सामाजिक दृष्टि से यह पेशा अपवित्र और नीच माना जाता था, जिसके कारण चमार जाति को निम्न वर्ग में रखा गया।
  2. प्राचीन एवं मध्यकालीन इतिहास:

प्राचीन भारत में वर्ण व्यवस्था के अनुसार मोची को शूद्र की श्रेणी में रखा गया था। यह वह वर्ग था जिसे सेवा करने वाला माना जाता था। यद्यपि शास्त्रों में वर्णित है कि समाज के लिए सभी कार्य आवश्यक हैं, लेकिन शारीरिक श्रम से जुड़ी जातियाँ सामाजिक रूप से तिरस्कृत होती रहीं।

मध्यकाल में चमार जाति की स्थिति और भी कठिन हो गई। हिंदू समाज में चमड़े से संबंधित कार्य को अपवित्र माना जाता था और चमार जाति को अछूत का दर्जा दिया गया था। उन्हें मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी, सार्वजनिक कुओं से पानी लेने से रोका जाता था और उन्हें गाँव के बाहरी इलाके में बसने के लिए मजबूर किया जाता था।

  1. ब्रिटिश काल और शिक्षा का प्रभाव:
    ब्रिटिश शासन के दौरान चमार जाति के जीवन में कुछ परिवर्तन देखने को मिले। अंग्रेजों ने भारतीय सेना में भर्ती के नियमों में कुछ ढील दी, जिसके कारण चमार जाति के कई युवा सेना में भर्ती होने लगे। इसके अलावा मिशनरी स्कूलों द्वारा शिक्षा को बढ़ावा दिए जाने के कारण कुछ दलित जातियों में जागरूकता बढ़ी।

ब्रिटिश काल में ही कुछ शिक्षित दलितों ने अपने अधिकारों के बारे में बात करना शुरू कर दिया था। इस समय जाटव उपजाति के कुछ लोगों ने अपने लिए “जाटव” नाम अपना लिया और “चमार” शब्द को त्यागने की मांग की। इस उपनाम को अपनाने का उद्देश्य सामाजिक हीनता से मुक्ति पाना और एक सम्मानजनक पहचान बनाना था।

  1. सामाजिक सुधार आंदोलन और डॉ. अंबेडकर का योगदान:

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने चमार जाति के उत्थान में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया है। डॉ. अंबेडकर स्वयं महार जाति से थे और उन्होंने दलितों के सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उन्होंने “अछूतों” को “दलित” शब्द से संबोधित किया और उन्हें संगठित होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।

डॉ. अंबेडकर ने दलितों को शिक्षा का महत्व समझाया, उन्हें कानून की मदद लेने को कहा और दलितों को समाज में आरक्षण का अधिकार दिया।

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TheChamar.In दलित पर हो रहे अत्याचारसे संबंधित खबरों को प्रसारित करती है तथा दलित समुदायों को उनके अधिकार के लिए उजागर करती है

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